क्या है तालिबान और क्यों इसे बनाया गया? ये है इसका पाकिस्तान और अरब देशों के साथ पूरा कनेक्शन?
तालिबान एक पश्तो भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है स्टूडेंट यानी छात्र. सन् 1990 की शुरुआत में नॉर्दन पाकिस्तान में तालिबान संगठन सामने आया था. उस समय अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेनाएं लौटने लगी थीं. माना जाता है कि यह पहला पश्तो आंदोलन था तो धार्मिक संगठन के तौर पर सामने आया.
अफगानिस्तान का इतिहास।
अफगानिस्तान की वजह से इस समय दक्षिण एशिया में खासी हलचल है. यहां पर अब किसकी सरकार होगी, सबकी नजरें इसी पर गड़ी हैं. मगर बहुत से लोग मान रहे हैं कि अफगानिस्तान पर एक बार फिर तालिबान का राज होगा. अगर तालिबान सत्ता में आता है तो फिर समीकरण पूरी तरह से बदल जाएंगे. तालिबान को बहुत ही कट्टर विचारों वाला संगठन माना जाता है. इसके बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है जिसके पीछे पाकिस्तान से लेकर अरब देश तक शामिल रहे हैं. आइए आपको बताते हैं कि तालिबान कौन हैं और कैसे ये अस्तित्व में आया.
धार्मिक संगठन के तौर पर हुई शुरुआत
तालिबान एक पश्तो भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है स्टूडेंट यानी छात्र. सन् 1990 की शुरुआत में नॉर्दन पाकिस्तान में तालिबान संगठन सामने आया था. उस समय अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेनाएं लौटने लगी थीं. माना जाता है कि यह पहला पश्तो आंदोलन था तो धार्मिक संगठन के तौर पर सामने आया. इसे शुरुआत में सऊदी अरब से वित्तीय सहायता मिलती थी. तालिबान ने जो वादा किया था, उसके तहत पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच फैले पश्तून इलाके में शांति और सुरक्षा की बहाली होगी. साथ ही सत्ता में आने पर वो अपने शरिया कानून को लागू करेंगे.
किसके साथ मिल कर तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया।
पाकिस्तान ने किया था तैयार
बेंगलुरु में रह रहे एयर मार्शल (रिटायर्ड) बिजॉय कृष्ण पांडेय कुछ वर्षों तक अफगानिस्तान में भी तैनात रहे हैं. उन्होंने बताया कि तालिबान को पाकिस्तान ने ही तैयार किया था ताकि वो नॉर्दन फोर्सेज से लड़ सके जो काबुल में तैनात थीं. यहां पर पठानों की जनसंख्या काफी ज्यादा थी.यहां पर हमेशा से पठान और पश्तूनों के बीच तनाव रहता है. पाकिस्तान ने हमेशा पश्तूनों का समर्थन किया था. उसने बॉर्डर पर मौजूद शरणार्थियों के कैंप्स से तालिबान को तैयार किया था. इसके बाद उन्हें कंधार में भेजा गया.
कैसे तालिबान ने अफगानिस्तान को गुलाम बनाया।
तालिबान को एक राजनीतिक आंदोलन के तौर पर माना गया जिसकी सदस्यता पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को मिलती है. साल 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के दौरान मुल्ला उमर इसका सुप्रीम लीडर था. मुल्ला उमर ने खुद को हेड ऑफ सुप्रीम काउंसिल घोषित कर रखा था. तालिबान वह आंदोलन था जिसे पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने ही मान्यता दी थी. विशेषज्ञ मानते हैं कि आज अगर अफगानिस्तान इतना पिछड़ा है तो इसकी वजह सिर्फ तालिबान है.
तालिबान ने अमेरिका के सैनिक पर बॉम से हमला किया।
नॉर्थ पाकिस्तान में हुआ ताकतवर
नॉर्थ पाकिस्तान में 1990 के दशक में तालिबान और ज्यादा ताकतवर हुआ. उस समय अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेनाओं की वापसी हो रही थी. पश्तूनों के नेतृत्व में तालिबान और ज्यादा ताकतवर हुआ. कहते हैं कि तालिबान सबसे पहले धार्मिक आयोजनों या मदरसों के जरिए मजबूत होता गया और इसका ज्यादातर पैसा सऊदी अरब से आता था.
तालिबान vs अफगानिस्ता।
तालिबान ने दक्षिणी-पश्चिमी अफगानिस्तान पर तेजी से कब्जा कर लिया और यहां पर उनका प्रभाव कायम हो गया. सितंबर 1995 में उन्होंने हेरात प्रांत पर कब्जा किया जिसका बॉर्डर ईरान से लगा है. ठीक एक साल बाद राजधानी काबुल पर तालिबान का कब्जा हुआ और तत्कालीन राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया गया. रब्बानी को अफगान मुजाहिद्दीन का संस्थापक माना जाता है जिसने सोवियत संघ के कब्जे का विरोध किया था. साल 1998 तक तालिबान के कब्जे में 90 फीसदी अफगानिस्तान आ चुका था.
तालिबान क्या चाहता है।
तालिबान ने लगाई थी भ्रष्टाचार पर लगाम
1980 का दशक खत्म होते-होते सोवियत संघ के अफगानिस्तान के जाने के बाद वहां पर कई गुटों में आपसी संघर्ष शुरू हो गया था. इसके अलावा मुजाहिद्दीनों से भी लोग परेशान थे. ऐसे में जब तालिबान सामने आया तो अफगानिस्तान के लोगों ने उसका स्वागत किया था. कहा जाता है कि शुरुआत में तालिबान ने अफगानिस्तान में मौजूद भ्रष्टाचार को काबू में किया और अव्यवस्था पर नियंत्रण लगाया. आज डर और दहशत का पर्याय बन चुके तालिबान ने अपने नियंत्रण में आने वाले इलाको को सुरक्षित बनाया ताकि लोग व्यवसाय कर सकें.
तालिबान को कोन कोन देश साथ दे रहा है।
फिर बना आतंक का दूसरा नाम
तालिबान धीरे-धीरे अफगानिस्तान पर हावी होता गया और उसने शरिया कानून लागू करना शुरू कर दिया. तालिबान पर मानवाधिकार उल्लंघन के भी आरोप लगे. साल 2001 में तालिबान ने बामियान प्रांत में बुद्ध की प्रतिमाओं का खत्म कर दिया. अफगानिस्तान के अलावा पाकिस्तान पर भी तालिबान का प्रभाव देखा जा सकता था. दोनों जगहों पर तालिबान ने कड़ी सजाओं की परंपरा शुरू कर दी. हत्या के दोषियों को फांसी दी जाती तो चोरी करने वालों के हाथ-पैर काट दिए जाते. पुरुषों को दाढ़ी रखने के लिए कहा जाता तो स्त्रियों के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य कर दिया गया था. टीवी, सिनेमा और संगीत के लिए भी तालिबान का कड़ा रवैया सामने आया. 10 साल से ज्यादा उम्र की लड़कियों का स्कूल जान भी बैन कर दिया गया.
पाकिस्तान के मदरसों में मिली शिक्षा
पाकिस्तान हमेशा इस बात से इनकार करता रहा है कि तालिबान के बनने के पीछे वो जिम्मेदार है लेकिन यह बात भी उतनी ही सच है कि तालिबान के शुरुआती लड़ाकों ने पाकिस्तान के मदरसों में ही शिक्षा ली. 90 के दशक से लेकर 2001 तक जब तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता में था तो सिर्फ 3 देशों ने उसे मान्यता दी थी-पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब. तालिबान के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ने वाला पाकिस्तान आखिरी देश था.

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